Friday, February 27, 2009
तब तो चूनावढ़ से गंगानगर पैदल ही आ जाते थे
अतीत जिंदगी का बीता हुआ हिस्सा है। उम्र जितनी आगे जाती है, यादें उतनी प्यारी लगने लगती हैं। उम्र के 75 बसंत देख चुके मिल्खीराम सेतिया से जब बीत दिनों के बारे में बात की गई तो उन्होंने बेहिचक उन्हें साझा किया। बकौल सेतिया तब स्टंर्ड ऑफ लिविंग सिंपल था, लेकिन आज मॉडनü हो चुका है। परिवर्तन के इस दौर में कुछ अच्छा भी हुआ, लेकिन बहुत कुछ है तो बुरा भी। उन्होंने बताया कि 1953 में सिंचाई विभाग में नौकरी शुरू की। तब चूनावढ़ से गंगानगर पैदल ही आ जाया करते थे। घर का खान-पान ही है जो उन्हें उम्र के इस पड़ाव में तंदुरुस्त बनाए हुए है। वे बताते हैं कि तब तो विवाह कम उम्र में ही कर दिया करते थे। मेरा विवाह 16 साल की उम्र में हुआ। बचपन तो होता था, लेकिन जिम्मेदारी को बखूबी समझते थे। शुरू से ही सेल्फ डिपेंड रहने की आदत है। पुराने समय में कबड्डी, गुल्ली डंडा आदि प्रमुख खेल होते थे। गली में गुल्ली-डंडा खेलना आज भी याद हैं, लेकिन आज इसे कोई खेलता ही नहीं। बचपन के हंसी लम्हें अकसर जब कोई बात करता है तो याद आ जाते हैं। 1947 में बंटवारे के बाद भारत आए सेतिया ने बताया कि आज की पीढ़ी के लिए बहुत से साधन उपलब्ध हैं, लेकिन तब ऐसा नहीं होता था। यहां तक की बिना लाइट के जीवन यापन करते थे। आजकल जो कॉफी-चाय का रिवाज है, वो भी काफी समय बाद शुरू हुआ। अंत में यही कहना चाहूंगा कि जो बीता सो ठीक, लेकिन भविष्य के लिए आज की पीढ़ी को सचेत होना जरूरी है।
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