Monday, February 23, 2009
सिक्कों की कमी के कारण चली गत्ते की मुद्रा
लोगों के दिलों में एक-दूजे के प्रति प्यार की झलक तो पुराने जमाने में ही नजर आती थी, जिसकी आज कमी खलती है। करीब 80 वषीüय कर्मसिंह मांगट ने बीते दिनों की यादों को ताजा करते हुए बताया कि बंटवारे से पूर्व एक बार सिक्कों की कमी होने के कारण गत्ते की मुद्रा चली थी। उक्त मुद्रा पर मुहर लगाकर चलाया गया था। 25 बीबी (पदमपुर) स्थित जीएसजीडी कॉलेज के निदेशक मांगट ने 1950 से पूर्व की बात करते हुए बताया कि जब हाड़ी की फसल काटने के लिए आवत बुलाई जाती थी। इस दौरान गांव के प्रत्येक परिवार का एक-एक आदमी सभी लोगों की फसलों को कटाने में मदद किया करता था, जिस परिवार की फसल काटी जाती थी, उक्त परिवार वाले सभी लोगों को हलवा, घी व शक्कर आदि खिलाया करते थे। गर्मी के मौसम में कबड्डी बहुत खेला करते थे, लेकिन आज मानो जैसे कबड्डी खेलना जैसा शरीर ही किसी के पास नजर नहीं आता। कुश्ती-कबड्डी प्रमुख खेलों में शामिल थे। उन्होंने कहा कि तब बीमारियों का इलाज बिना डॉक्टरों के लोग घरों में देसी नुस्खों से कर लेते थे। आक के फूलों में से एक चार काने वाला लौंग निकाल कर गुड़ की गोली बनाकर मरीज को देते तो बुखार दूर हो जाता था। आंखों का इलाज सुरमे से किया जाता था। बुजुर्ग लोगों को नजर के चश्मों की जरूरत भी नहीं पड़ती थी। उन्होंने बताया कि महाराजा गंगासिंह के समय चोरी, झगड़ा-फसाद नहीं होते थे। तुरंत न्याय मिल जाया करता था।
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