
आज जहां एक घर में भी अलग-अलग चूल्हे बने हैं, पुराने समय में कई घरों की रोटी एक ही चूल्हे पर पकती थी। यह कहना है कि वार्ड नं. 13 निवासी 80 वषीüय प्रसन्नीदेवी मित्तल का। उन्होंने बताया कि तब मोहल्ले में साझा चूल्हा हुआ करता था, जिस पर महिलाएं बारी-बारी से रोटियां सेकती थीं। वे बताती हैं कि वक्त के साथ-साथ समाज इतनी बदल जाएगा, ये कभी सोचा भी नहीं था। आज स्वाथीüपन ज्यादा नजर आता है। उन्होंने बताया कि 60-65 साल पहले जब विद्युत व्यवस्था नहीं होती थी तो रात के समय अंधेरे में आवाज देकर एक-दूजे की पहचान होती थी। बिना लाइट के भी कभी दिक्कत महसूस नहीं होती थी। रात के समय मिट्टी के तेल के दिए इस्तेमाल करते थे। गैस सिलेंडर तो अब आए हैं, लेकिन तब चूल्हा पर ही खाना बनाते थे व पानी गर्म किया करते थे। आज भी कई जगह ऐसा प्रचलन है, लेकिन पूरी तरह लोग चूल्हे पर निर्भर नहीं हैं। आज इंसान खुद की जरूरतों को पूरा करने में लगा हुआ है, लेकिन तब ऐसा बहुत कम देखने को मिलता था। वे बताती हैं कि आज एक बच्चे का लालन-पालन कर पाने में कई लोग असमर्थ नजर आते हैं, लेकिन तब तो पांच या इससे अधिक बच्चों का भी बड़ी आसानी से लालन-पालन हो जाता था। बच्चों को समय पर खिलाना-पिलाना व अन्य देखरेख अकेली मां ही कर लेती थी। आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में इंसान काफी व्यस्त हो चुका है।
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