Saturday, February 21, 2009
बेटी को दहेज में चरखा दिया करते थे
उम्र बेशक 85 वर्ष हो चुकी है, लेकिन उनकी बातों और हौसले से कोई उन्हें बुजुर्ग नहीं कह सकता। पुराने समय का खान-पान दौलतराम गोदारा को आज भी स्वस्थ बनाए हुए है। वे बताते हैं कि आज विवाह के रस्मो-रिवाज में भी परिवर्तन आया है। तब तो ब्राrाण रिश्ता तय किया करते थे, लेकिन आज ऐसा नहीं है। लड़का-लड़की शादी से पहले एक-दूजे को देखते नहीं थे, लेकिन अब तो पहले दिखाई, फिर सगाई और बाद में विवाह। दहेज में लड़की को गाय-भैस, घोड़ी के साथ चरखा जरूर दिया करते थे। आज तो टीवी व फनीüचर का अधिक प्रचलन है। विवाह की रस्मे भी बहुत हुआ करती थी। घर में देसी घी का चूरमा बनाया जाता था, जिसे कई दिनों तक खाया करते थे। गुड़ व चने इतने होते थे कि पशुओं को भी खिलाया करते थे। उन्होंने बताया कि कच्चे मकान होते थे, जिनकी दीवारों पर चीकनी मिट्टी की पुताई करते थे। त्यौहारों के वक्त सारे घर में चीकनी मिट्टी का लेप करते थे। अब पक्के मकान हैं, जिसके चलते चीकनी मिट्टी लोग उपयोग समाप्त हो गया है। नशे की बढ़ती प्रवृçत्त पर चिंता जताते हुए उन्होंने कहा कि तब लोग दूध-दही आदि खाकर सेहत का सबसे ज्यादा ख्याल रखते थे, लेकिन आज नशे की लत ज्यादातर युवाओं में ही नजर आती है। कई जगह तो ऐसी स्थिति देखने को मिलती है कि युवक माता-पिता की सेवा करना तो दूर की बात खुद भी जिंदगी जी पाने में नाकाम साबित हो रहे हैं।
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