Sunday, February 15, 2009
मां-बाप की दुआएं ले ली हैं जिसने,पापों की गठरी उसने सर से उतारी ली
कहते हैं कि -
मां-बाप की दुआएं ले ली हैं जिसने,
पापों की गठरी उसने सर से उतारी ली
आज व्यर्थ के ख्ार्च और दुनिया की विलासिता ने इंसान के जीवन में बड़ा परिवर्तन ला दिया है। दिन-रात की मेहनत और भागदौड़ के बावजूद आर्थिक संतुष्टि कहीं देखने को नहीं मिलती। केवल धन-दौलत ही सबकुछ नहीं बल्कि बड़े-बुजुगोZ की देखभाल इंसान के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्स्ाा है। एफ ब्लॉक निवासी 82 वषीüय सोमनाथ भाटिया से जब बात की तो उन्होंने कहा कि बुजुगाüवस्था में यादें, बातें और अनुभव ही, जो हर कदम पर साथी बना है। यादों को साझा करते हुए उन्होंने बताया कि बंटवारे से पहले पाकिस्तान में सलवार-कुर्ता पहनकर स्कूल जाया करते थे। आज जहां स्कूल जाने वाले बच्चों को मां टिफिन में मैगी व अन्य चीजें पैक करके देती है, तब खद्दर के कपड़े में चटनी व चपाती बांध कर दिया करती थी। मजहब के नाम की लड़ाई से तौबा करते हुए वे बताते हैं कि बंटवारे के दौरान हुए दंगों की पीड़ा आज भी किसी न किसी पल सताने लगती है। वे बताते हैं कि आज जहां मेहमानों को चाय पिलाई जाती है, तब दूध का प्रचलन था। जब गंगानगर आए थे तो ब्लॉक एरिया में मकान कम पेड़ ज्यादा हुआ करते थे। धीरे-धीरे जनसंख्या बढ़ती गई, सिंचाई योग्य जमीन होने के कारण अनेक लोग यहां बस गए।
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