Thursday, February 19, 2009
`अब मिलावट का दौर´
किसी विद्वान ने कहा है कि - वह आदमी जो कभी और कहीं असफल नहीं हुआ, वह कभी महान नहीं बन सकता। आदर्श नगर निवासी 84 वषीüय जोगेंद्रसिंह बताते हैं कि असफलताएं ही सफलता का मार्ग प्रशस्त करती हैं। असफलता का हर कदम एक सबक के रूप में उभरकर सामने आता है, जो सफलता की इच्छा को जागृत करता है। वे बताते हैं कि सबकुछ इंसान के हाथ में नहीं होता। वक्त पर बहुत कुछ निर्भर है। आज समय के साथ हर चीज में परिवर्तन आ रहा है। बच्चों के आज इतने खर्चे हो चुके हैं, तब जितने में लोग परिवार का पालन-पोषण किया करते थे। परिवार तो छोटे होते जा रहे हैं, लेकिन खर्च बीत कल के मुकाबले बढ़ता ही जा रहा है। उन्होंने बताया कि आज घरों में कई बार दूषित पेयजल की सप्ल्ााई होती है, लेकिन तब ऐसा नहीं था। खुली नहरों में भी पीने योग्य पानी हुआ करता था। प्रदूषण कम होने की वजह से पानी भी शुद्ध होता था। कच्ची नहरों के बावजूद पेयजल में गंदगी नहीं होती थी। जहां तक सवाल है फिल्टरड पानी का तो आज घरों में फिल्टर लगे हैं, तब फिटकरी का इस्तेमाल किया जाता था। बीड़ी-सिगरेट का नाम कोई नहीं जानता था। सवा रुपए किलो शुद्ध देशी घी मिलता था। दूध व दही प्रचुर मात्रा में प्रत्येक घर में था। खान-पान की बात पर उन्होंने बताया कि पुराने समय का खाए हुए दूध-घी के कारण ही वे आज भी स्वस्थ महसूस करते हैं। लेकिन आज का घी व दूध रासायनिक मिलावट के कारण धीमा जहर बन गया है।
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