Saturday, February 7, 2009
`मास्टर दा खुंडा ते बापू दी जुत्ती...´
भारत-पाक बंटवारे ने उन्हें कई सालों के लिए बेघर बना दिया। तब चिंता थी तो केवल परिवार वालों की सुरक्षा की। जान बची तो लाखों पाए। पाकिस्तान स्थित बहावलपुर की चिस्तियां मंडी में जन्मे फतेहचंद भठेजा भारत-पाक बंटवारे को एक बड़ा नासूर मानते हैं। उक्त समय हुए दिल-दहला देने वाले दंगे कई सालों बाद भी उन्हें भूले नहीं हैं। उन्होंने बताया कि अपने भाई को बचाने के लिए उन्होंने पाकिस्तान में एक आदमी को रुपयों का लालच दिया, जिसके चलते वे भाई को रेलगाड़ी के पाखाने में छुपाकर भारत ले आए। बंटवारे के बाद 23 बीबी (पदमपुर का पुराना नाम) में रहने लगे। जब उनसे गुजरे जमाने की बात की जाती है तो वे पंजाबी भाषा में अपने बचपन का याद करते हुए बताते हैं कि `साडे टाइम दियां गल्लां ही होर हुंदियां सी.....मास्टर दा खुंडा ते बापू दी जुती दा ऐना जादू सी कि आज वी 32 तक दे पहाड़े मुह-जुबानी याद है।´ करीब 80 वषीüय फतेहचंद पदमपुर के प्रसिद्ध कपड़ा व्यवसायियों में से एक हैं। बहावलपुरी भाषा शैली वाले भठेजा बताते हैं कि आज भेदभाव ज्यादा है। तब ऐसा नहीं था। क्रोध नाम की कोई चीज नहीं होती थी। इंसान के दिल में एक-दूजे के प्रति प्रेम-प्यार अधिक होता था। मोहल्ले वाले परिवार की तरह रहते थे। मिल-जुलकर गुजर बसर करना तब लोगों की आदत में शामिल था। ना चोरी का डर और ना ही शर्मसार करने वाली किसी हरकत का। गरीबी को दूर रखने का मंत्र बताते हुए वे कहते हैं कि `घर में जब गरीबी आ जाए तो, नमक की चुटकी रोटी के साथ खा लेनी चाहिए।´
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