Friday, February 13, 2009

समाçप्त के कगार पर है घूंघट का रिवाज

जो व्यक्ति समय के साथ नहीं चलते और ठहर जाते हैं बीते कल के साथ, वो वर्तमान का पूरा लुत्फ नहीं उठा पाते। समय कभी ठहरता नहीं और ना ही किसी का इंतजार करता है, इसलिए उसका फायदा उठाना जरूरी है। आने वाला पल जाने के लिए ही आता है। इंसान को चाहिए कि वह हर पल को जिये। पुरानी आबादी निवासी 80 वषीüय सरजीतकौर का मानना है कि अतीत को भूलना नहीं चाहिए, लेकिन उसमें डूबना भी नहीं चाहिए। हां! बचपन के दिन और वो जमाना बहुत किफायती था, लेकिन `आज´ भी बुरा नहीं है। उन्होंने बताया कि पुराने समय में तो महिलाएं घर में भी घूंघट रखती थीं, लेकिन आज तो घर हो या बाहर ऐसा देखने को कम मिलता है। ऐसी बात नहीं कि लज्जा-शर्म भंग हो गई, लेकिन घूंघट का रिवाज खत्म होता नजर आ रहा है। वे बताती हैं कि 60-70 साल पहले गांवों की तरह माहौल हुआ करता था। पानी भरने के लिए 25 घरों में से एक घर में नल हुआ करता था, जहां से महिलाएं पानी भरकर लाती थीं। कतार में महिलाएं मटकों के जरिए घरों के लिए पानी लाती थीं, लेकिन आज तो घरों में वाटर वक्र्स से पानी सप्लाई होता है। घर में आज जहां दिन में तीन-चार प्रकार की सçब्जयां बनाई जाती हैं, तब दिन में दो बार दाल का ही इस्तेमाल करते थे। वे कहती हैं कि अब जो समय है, उसमें जीवन तो व्यतीत करना ही है और ये जरूरी भी है।

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