Saturday, February 7, 2009
रिफ्यूजी कॉलोनी के नाम से जाना जाता था मुखर्जी नगर
बीते वक्त मेंे कुछ लम्हें ऐसे भी होते हैं, जिन्हें भुला देना संभव नहीं होता। जिंदगी को पटरी पर निरंतर चलने देने के लिए अतीत भी एक सहारे के रूप में काम करता है। मुखर्जी नगर निवासी किशोरीलाल मदान अपने जेहन में खट्टी-मिट्ठी यादों को आज भी समेटे हुए हैं। वे बताते हैं कि करीब 1966 के वक्त बस स्टैंड के पास स्थित पुलिस चौकी वाले स्थान पर सरकारी स्कूल हुआ करता था, जो नौ नंबर स्कूल के नाम से जाना जाता था। स्कूल के ईर्द-गिदü टिब्बे हुआ करते थे। आज जहां रिक्शों-बसों पर बच्चे स्कूल जाते हैं, लेकिन तब कच्चे रास्ते से पैदल ही आया-जाया करते थे। उन्होंने बताया कि तब मुखर्जी नगर के स्थान पर रिफ्यूजी कॉलोनी बसी थी। धीरे-धीरे जिसे मुखर्जी नगर नाम दिया गया। वे बताते हैं कि हॉफ पेंट पहनकर स्कूल जाना उन्हें आज भी याद है। कंधे पर घर का बना स्कूल बैग टांगकर कच्चे रास्तों से गुजरना अभी तक याद है। उन्होंने बताया कि एक वक्त था जब कुत्ता लकनी नहर का पानी लोग घरों में इस्तेमाल किया करते थे। लोग मटके भरने के लिए नहर पर आया करते थे। क्योंकि तब नहर की सफाई अच्छे तरीके से होती थी। नहर में साफ जल को तैरते हुए देखने का आनंद ही अलग होता था। वे बताते हैं कि तब सस्ता जमाना होता था, कम खर्च में संयुक्त परिवार को चलाया जाता था। आज आमदन के साथ-साथ खचोZ में भी बढ़ोत्तरी हुई है। रहन-सहन में आया परिवर्तन भी बेतहाशा वृद्धि का हिस्सा है। आज के समय में बड़े परिवार का पालन-पोषण करना असंभव नहीं, लेकिन मुश्किल जरूर है।
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