Monday, February 16, 2009
मशहूर थे चिçश्तयां के खरबूजे
उम्र के इस पड़ाव ने उनके हाथ में सहारे के लिए छड़ी जरूर दे दी है, लेकिन जब उनके मन को टटोला तो नजर आया कि बहुत सी ऐसी यादें वे अपने जेहन में समेटे हैं, जो उन्हें आज भी जवां बनाए हुए है। ई-ब्लॉक निवासी 76 वषीüय हीरालाल गुप्ता कहते हैं कि इंसान को हार से कभी निराश नहीं होना चाहिए। नाकामयाबी के लिए मुकद्दर को कोसना भी उचित नहीं, बल्कि हार से सीख लेकर किया गया प्रयास किसी सफलता से कम नहीं। बुजुगाüवस्था में अनुभव का पिटारा लिए गुप्ता बताते हैं कि उनका जन्म पाकिस्तान के बहावलनगर में हुआ। बंटवारे के दौरान वे मुसलमान बनकर भारत की ओर रवाना हुए। कत्ल-ए-आम की स्थिति में कुछ मुसलमानों उन्हें पहचान लिया और उनके सहित चार जनों को मस्जिद में रोक लिया। उन्होंने बताया कि इस दौरान उनके साथ एक कुत्ता भी था, जिसने मस्जिद के एक दरवाजे पर लगी संकल को पंजों से खींचकर खोल दिया। कुदरत की इस मेहरबानी का लाभ उठाते हुए वे रातों-रात वहां से निकल लिए। वे बताते हैं कि पुराने समय में पाकिस्तान स्थित चिçश्तयां के खरबूजे भारत में भी मशहूर थे। यहां रह रहे अनेक लोग उन खरबूजोंे के दीवान थे। काफी तादाद में खरबूजों को बेचने के लिए यहां लाया जाता था। उन्होंने बताया कि जब वे छोटे थे तब बाजार में स्थित दुकानों के बाहर लोहे की शटर की जगह लकड़ी के सींखचों से बने टेंपरेरी दरवाजे होते थे। क्योंकि चोरी-चकारी का कोई डर नहीं होता था। गुप्ता दिन में टीवी पर धामिüक कार्यक्रम देखने के अलावा अकाउंट का कामकाज भी देखते हैं।
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