Monday, February 9, 2009

तब गैस लैंप ही होते थे रोशनी का जरिया


बुजुçर्गयत के प्रति ज्यादातर मत नकारात्मक ही मिलेंगे, लेकिन यदि बुजुगोZ के अनुभवों को टटोलकर जीवन में उतार लिया जाए तो बहुत सी मुश्किल राहें आसान हो सकती हैं। विनोबा बस्ती निवासी सुदर्शन मल्होत्रा बताते हैं कि 1947 में वे भारत आए, तब गंगानगर सुनसान होता था। युवावस्था से ही राजनीति की ओर आकर्षित रहे मल्होत्रा बताते हैं कि वंशवाद के चलते आज राजनीति में थोड़ा परिवर्तन जरूर आया है। करीब 73 वषीüय मल्होत्रा बताते हैं कि जब वे भारत आए तब गोल बाजार में गैस लैंपों व मिट्टी के तेल के दीपकों से रोशनी होती थी। सभी दुकानदार गैस लाइटों को दुकानों के आगे टांग दिया करते थे। तब दुकानों के आगे लगे शैड लकड़ी के काने से बनाए जाते थे। कच्चे रास्तों में जब बारिश होती थी तो गोल बाजार में कीचड़ पसर जाता था। राहगीरों के पांव धंस जाया करते थे। उन्होंने बताया कि महाराजा गंगासिंह के समय में प्रजा परिषद हुआ करती थी। रियासत काल के बाद क्षेत्र में कांग्रेेस सहित अन्य दलों का उदय हुआ। वे कहते हैं कि तब चार आना में कांग्रेस का सदस्यता फार्म भरा जाता था। 1949-50 के बाद यहां लोकसभा चुनाव हुए, जिसमें महाराजा करणीसिंह व प्रो. केदार आमने-सामने थे। महाराजा करणीसिंह ने वो चुनाव जीत लिया था। 1952 में चौ. मोतीराम सहारण कांग्रेस की टिकट पर विधानसभा चुनाव जीतकर गंगानगर के पहले विधायक बने। उन्होंने बताया कि आज राजनीति में कई मापदंड बदल गए हैं। आयु सीमा का प्रतिबंध कई बार अच्छे प्रत्याशी के चयन में रुकावट बनता है। मल्होत्रा ने बताया कि इंसान संघर्ष को जीवन का लक्ष्य मानकर चले, तो जीने का मजा ही कुछ और है।

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