Sunday, February 15, 2009

तब तो गुरुद्वारों में लगा करती थी कक्षाएं


वक्त इंसान को बहुत कुछ सिखाता है, लेकिन समय रहते संभलना और न संभलना व्यक्ति के हाथ में होता है। खालसा नगर निवासी 84 वषीüय बाबूसिंह बराड़ कहते हैं कि एक वक्त था जब खेती करने के लिए साधनों की कमी होती थी, लेकिन फिर भी किसान हाथों से ही हल जोता करते थे। ऐसा नहीं है कि आज किसान की मेहनत नहीं लगती, लेकिन पहले के मुकाबले बहुत कम। बराड़ ने बताया कि पुराने समय में गुरुद्वारों में पढ़ाई करवाई जाती थी। गुरुद्वारे के सेवादार गुरमुखी की शिक्षा दिया करते थे। उन्होंने बताया कि एक बार उनके पास कलम नहीं थी, तो रेत को जमीन पर डालकर उसपर अक्षर उकेरा करते थे, जिसके जरिए भी उन्हें कुछ अक्षरों का ज्ञान हुआ। उम्र के इस पड़ाव में भी बराड़ निकटवतीü गांव 12-जी छोटी में जमीन की देखरेख के लिए अकसर जाते हैं। वे बताते हैं कि तब ट्रैक्टर व गेहूं थ्रेसिंग के लिए मशीने नहीं हुआ करती थीं। जब पहली बार उन्होंने ट्रैक्टर को देखा तो हैरान रह गए, लोगों ट्रैक्टर को `हल चलाने वाली मोटर´ के नाम से पुकारते थे। पौते-पड़पौतों वाले बराड़ बताते हैं कि जब वे गांव में रहा करते थे, तब शहर में कचहरी पर ऊंटगाड़े के जरिए आया करते थे। उन्होंने बताया कि तब कपड़े फैशन के लिए नहीं पहने जाते थे, खादी के कपड़ों का प्रचलन होता था। आज की राजनीति से घृणा करते हुए वे कहते हैं कि विकास के नाम पर वोट बटोरे जाते हैं, लेकिन असल में आज की राजनीति पद लालसा की है, न की विकास की। इसमें सुधार की आवश्यकता है।

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