Monday, February 23, 2009
गुरुनानक गल्र्स स्कूल-कॉलेज की जगह लगता था पशुओं का मेला
जिंदगी को पटरी पर निरंतर चलने देने के लिए अतीत भी एक सहारे के रूप में काम करता है। बीते दिनों की यादों में बहुत से मीठे-कड़वे अनुभव भी çछपे होते हैं। उम्र के 83 बसंत देख चुके विनोबा बस्ती निवासी इंद्रजीतसिंह बिंद्रा बताते हैं कि इंसान के हाथ में बहुत कुछ होता है, वो चाहे तो जिंदगी के हर कठिन मोड़ पर मुश्किलों को बड़ी आसानी से विदा कर सकता है। पुराने समय की बातों को याद करते हुए वे बताते हैं कि मल्टीपर्पज स्कूल करीब 1944 में स्टेट हाई स्कूल के नाम से जाना जाता था, जहां उन्होंने मैटि्रक पास की। करीब 1940 की दिनों को कुदेरते हुए रिटायर्ड हैडमास्टर बिंद्रा बताते हैं कि गुरुनानक गल्र्स स्कूल-कॉलेज व नेहरू पार्क के स्थान पर पशुओं का बड़ा मेला लगा करता था, स्कूल-कॉलेज तो बाद में बने हैं। मेले में होने वाले वॉलीबॉल मुकाबले में हर बार हाजी साहब की टीम जीतती थी। उन्होंने बताया कि पुराने समय में सçब्जयों के रोचकता भरे कंपीटिशन भी हुआ करते थे, जिसमें विजेताओं को पुरस्कृत किया जाता था। बकौल बिंद्रा पुराने समय में लोगों के खर्च बहुत कम हुआ करते थे और आमदन भी कम। उन्होंने बताया कि वे जब पढ़ने के लिए दूसरे शहर में जाते तो वहां एक कमरे का एक माह का किराया चार आना लगा करता था। वे बताते हैं कि गंगानगर में जब विद्युत सप्लाई प्रथम बार आई, तब का समय भी उन्हें याद है। घरों की बजाय सरकारी कार्यालयों में सबसे पहले विद्युत सप्लाई हुई। गंगानगर ने आज बहुत तरक्की कर ली है। तब तो एक छोटी सी ढ़ाणी होती थी, जिसे लोग रामनगर कहते थे।
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