Thursday, February 12, 2009

बुजुगोZ का फैसला कोर्ट-कचहरी से कम नहीं होता था


वो भी एक वक्त था जब कोर्ट कचहरी की जरूरत नहीं पड़ती थी। घर के बड़े-बुजुगोZ को फैसला सर्वोपरि होता था, लेकिन आज सब दूषित होता नजर आ रहा है। करीब 70 वषीüय छगनलाल सचदेवा बताते हैं कि मुकदमेबाजी का प्रचलन कुछ समय पूर्व ही चला है। बुजुगाüें की बात को उतनी अहमियत नहीं मिलती, जितनी पुराने समय में दी जाती थी। वे बताते हैं कि तब 50 रुपए जिसके पास होते थे, वो सेठ कहलाता था, लेकिन आज करोड़पति होने के बावजूद से `सेठाई´ जैसी बात नहीं है। सरकारी नौकरी आसानी से मिल जाती थी, लेकिन लोग खुद के व्यवसाय को ज्यादा तरजीह देते थे। वे बताते हैं कि पुराने समय में दिल्ली से लाई गई घडि़यां यहां बहुत बिका करती थीं, लेकिन अब उतनी तादाद में घडि़यों की बिक्री नहीं होती। रेडियो सुनने का प्रचलन अधिक था। एक रेडियो पर समाचार व गाने सुनने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता था। तब कपड़ों को तन ढकने के लिए इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन आज तो फैशन के लिए कपड़े पहने जाने लगे हैं। कपड़ों कीमत एक दिन इतनी हो जाएगी, कभी सोचा नहीं था। उन्होंने बताया कि तब किराए-भाड़े भी कम हुआ करते थे। बीकानेर जाने के लिए पांच रुपए किराया लगा करता था। आज कमरतोड़ महंगाई के लिए कुछ हद तक हम खुद भी जिम्मेदार हैं, जो अनावश्यक खर्च को नहीं रोकते।

No comments:

Post a Comment