Thursday, February 19, 2009
दस्त का इलाज तूंबे की जड़
आज से सत्तर वर्ष पहले ना तो कोई गंभीर बीमारी हुआ करती थी और ना ही चिकित्सक हुआ करते थे। उस जमाने में केवल नाड़ी वैद्य हुआ करते थे जो नाड़ी की गति जांच कर बीमारी का उपचार किया करते थे। उम्र के 92 बसंत देख चुके श्योपुराकस्सी निवासी श्योनारायण पूनियां ने बताया कि हमारे समय में बुखार होने पर धोरों की रेत को पानी में उबालकर छानकर पिलाने से बुखार दूर किया जाता था तथा दस्त लगने पर तूंबे की जड़ चूसने को दी जाती थी। लेकिन समय के फेर ने देशी नुस्खों को भुलाकर अंग्रेजी दवाओं का बोलबाला कर दिया। उनका कहना है कि उस समय में लोगों के पास जमीन बहुत हुआ करती थी। गेहूं की पैदावार कम होती थी तथा पशु पालन कर उनका व्यापार किया जाता था। उन्होंने बताया कि हमारे घर में एक हजार बकरियां व 80 गायें हुआ करती थी। सूरतगढ़ से श्रीगंगानगर के बीच कोई शिक्षा केंद्र नहीं होने के कारण क्षेत्र के विद्यार्थियों को पढ़ने के लिए संगरिया पैदल या ऊंटों पर सवार होकर जाना पड़ता था। पूनियां ने बताया कि क्षेत्र में महाराजा गंगासिंह न्याय के लिए प्रसिद्ध थे। पीने के पानी के लिए कई कोसों के अंतराल पर कुएं होते थे। सूरतगढ़ में पानी की ढाब होती थी जिसके पास एक छोटा सा बाजार लगा करता था। बीकानेर आने-जाने वाले राहगीर इसी ढाब पर पानी पीकर अपने गंतव्य की ओर बढ़ते थे। आज के युवा वर्ग को नसीहत देते हुए श्योनारायण कहते हैं कि मां-बाप की सेवा से बढ़कर संसार में कोई भी पुण्य नहीं है।
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