Sunday, February 8, 2009

कल जो पारदशिüता बातों में थी, वो आज कपड़ों में है


27 दिन से खाट पर लेटा हूं। बेशक मुझे देखकर कुछ लोग लाचार समझें, लेकिन उम्र के इस पड़ाव में भी मैं खुद को किसी काम में नाकाम नहीं समझता। बुजुगाüवस्था में अतीत ही है, जो मेरा सबसे अधिक साथ दे रहा है। यह कहना है उम्र के 80 बसंत देख चुके जयकुमार `बेकस´ का। पाकिस्तान के सरगोधा कस्बे में जन्मे `बेकस´ से जब बीते कल के बारे में बात की गई तो उन्होंने अपने अंदाज में इसे बयां किया। वे बताते हैं कि जब भारत-पाक बंटवारा हुआ तो वहां के मुसलिमों ने उन्हें रोते हुए विदाई दी थी, तो कैसे भूल जाएं वो दिन। तब तो ईद के वक्त शामियाना में हिंदुओं को मीठा भोजन करवाया जाता था। बकौल `बेकस´ सियासत ने जो नफरत फैलाई है, उससे संस्कृति भी नष्ट-भ्रष्ट होकर रह गई है। बच्चों की सेवा से संतुष्ट `बेकस´ कहते हैं कि `अपनी औलाद से ताजीम की उम्मीद न रख, गर अपने मां-बाप से तूने बगावत की है...´ पी-ब्लॉक निवासी `बेकस´ बताते हैं कि तब जुबान की कीमत सबसे बड़ी होती थी। कल तक जहां लोगों की बातों में पारदशिüता होती थी, आज सिर्फ कपड़ों में पारदशिüता नजर आती है। कुछ जगह बुजुगोZ की इज्जत न होते देख दुख होता है तो ऐसा लगता है कि तब तो बुजुगोZ को रहमत समझा जाता था, लेकिन आज मानो जहमत लगते हैं। दोष किसी का नहीं, वक्त ही ऐसा है। उन्होंने बताया कि शहर में अध्याçत्मक-धामिüक लाइबे्ररी होनी चाहिए, ताकि परंपरा बरकरार रह सके। वे बताते हैं कि युवावस्था के दिनों में आजाद सिनेमा बहुत बार फिल्म देखने जाते थे, तब सिनेमा की छत नहीं हुआ करती थी। बरसात के दिन में शो कैंसिल भी करना पड़ता था।

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