Sunday, February 8, 2009
राजस्थान के बागड़ में बिकने आता था पाकिस्तान का गेहूं
गुजरे जमाने की यादें अकसर जुबां पर आ ही जाती हैं। बीते पल चाहे सुख में बीते हों या फिर दुख में, उन्हें भुला पाना संभव नहीं होता। करीब 90 वषीüय बनवारीलाल नागपाल बताते हैं कि आज और कल में जो अंतर आया है, वो वक्त की ही मेहरबानी है। पुरानी यादों को ताजा करते हुए उन्होंने बताया कि भारत-पाक बंटवारे से पहले पाकिस्तान से एक रुपए 14 आने का एक मण गेहूं मिलता था, जिसे खरीदकर भारत में बेचने के लिए लाया जाता था। राजस्थान के बागड़ इलाके में पाकिस्तान के गेहूं की बिक्री अधिक होती थी। वे कहते हैं कि तब तो एक बात मशहूर हुआ करती थी कि `जिसकी चले दुकानदारी, वो क्यों करे तहसीलदारी।´ पढ़ाई करने की तमन्ना तो थी लेकिन तब पढ़ लिखकर सरकारी कर्मचारी लगने की बजाय लोग दुकानदारी में ज्यादा विश्वास रखते थे। इसलिए उनके पिताजी ने उन्हें चार कक्षा पढ़ने के बाद स्कूल से हटा लिया। वे बताते हैं कि आज जहां टाइलों-माबüल से जड़े मकान बनाए जाते हैं तब कच्ची मिट्टी की ईंटों से घर बनाया करते थे, दो-दो फीट चौड़ी दीवार हुआ करती थी। दीवारों पर गोबर का लेप किया जाता था। न तो ज्यादा खर्च आता है और न ही ज्यादा समय लगता था। तब अपराधी को तुरंत सजा का प्रावधान हुआ करता था। ईश्वर के प्रति आस्था रखने वाले नागपाल बताते हैं कि तब सोने की मुरकियों का प्रचलन होता था। धनाढ्य वर्ग का प्रत्येक व्यक्ति मुरकियां जरूर पहनता था। घुड़सवारी तो पहले आम बात हुआ करती थी, लेकिन आज कुछ ही लोग शौंकिया तौर पर इसका इस्तेमाल करते हैं।
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