Tuesday, February 24, 2009
एक मटका सिर पर और दूसरा कमर पर
एक मटका सिर पर और दूसरा कमर पर। पुराने जमाने में महिलाओं की दिनचर्चा में शामिल हुआ करता था कुंओं से पानी भरना। करीब 84 वषीüय कलावती देवी का कहना है कि आज समय बदल गया है। घर में ही पेयजल की सप्लाई हो जाती है और वैसे भी आज के वक्त एक महिला के लिए दो मटके उठाकर दूर जगह से पानी भरकर लाना कठिन है। तब तो महिलाएं घर में रखी चक्की पर ही गेहूं पीसकर आटा तैयार करती थीं और फिर संयुक्त परिवार के करीब 25 सदस्यों का खाना भी बनाती थीं। इसके बाद खेतीबाड़ी के काम में हाथ बंटाती थीं। वे बताती हैं कि बारात ऊंटों, बैलगाडि़यों व घोडि़यों पर निकला करती थी। चार दिन तक पड़ाव डालने वाली बारात का सारा मोहल्ला स्वागत करता था। बारात के साथ आए बैलों व ऊंटों की भी खूब सेवा होती थी। आज तो दोपहर को बारात जाती था, शाम को वापसी। घंटे-दो घंटे का हो-हल्ला होता है, न तो पुराने समय के रीति-रिवाज नजर आते हैं और न ही वो गीत-संगीत। वे बताती हैं कि तब बुखार होते ही गर्म बाजरे की राबड़ी मरीज को पिलाते थे। बुखार जल्दी ठीक हो जाता था। आज अंग्रेजी दवाईयाें पर लोग ज्यादा निर्भर हैं, लेकिन तब देसी नुस्खे काम आते थे। मेहनत ज्यादा होती थी और खुराक भी ज्यादा। उनका कहना है कि आज जमाना बदल गया है। स्वाथीü पन ज्यादा है, जिसके चलते लोग अपने जिम्मेदार भी भूलते नजर आ रहे हैं। मर्यादाओं को तोड़ना आने वाले कल के लिए हानिकारक हो सकता है।
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