Tuesday, February 3, 2009

सिर पर रखकर लाया करते थे दूध की टंकियां


बीते दिनों के बारे में भावुक होना लाजमी है, लेकिन सच तो यह है कि जीना आज ही में चाहिए। हां, ये जरूर है कि अतीत में जो कुछ अच्छा है, उसे भविष्य के सांचे में ढालने की कोशिश की जाए। विनोबा बस्ती निवासी प्यारेलाल शर्मा बीते दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि आज जहां दूध 20 रुपए किलो तक पहुंच गया है, 1960 के करीब सात आना सेर दूध मिला करता था। वे बताते हैं कि शहर में दूध बेचने के लिए आज भी गांवों से लाया जाता है, परंतु आज मोटरसाइकिल सहित यातायात के अनेक साधन हैं, तब इतने साधन नहीं थे। लोग कई कोस दूर साइकिलों पर जाया करते थे, जिस गांव में दूध मिला करता था, वहां सड़क संपर्क नहीं था। इसलिए गांव से तीन-चार किमी दूर ही किसी दुकान पर साइकिल खड़ी कर देते थे। वहां से दूध की टंकियां सिर पर रखकर लाया करते थे, जिसे शहर लाकर बेचा जाता था। वे बताते हैं कि बचपन के कुछ पल उन्होंने हरियाणा में भी बिताए हैं। हरियाणा के भिवानी कस्बे में `पीलिया जोहड़´ पर हुक्का पीना आज भी याद है। करीब 66 वषीüय शर्मा ने बताया कि उक्त जोहड़ में पीलिया रोगी को यदि स्नान करवाया जाए तो वह रोगमुक्त हो जाता है। पुराने समय से पीलिया पीडि़त लोग वहां रोगमुक्त होने के लिए आ रहे हैं। बकौल प्यारेलाल शर्मा आज रात-रातभर लोग जागते रहते हैं। कोई सैर करने के लिए तो कोई पाटिüयों में घूमता नजर आता है। तब तो शाम सात-आठ बजे ही लोग सो जाया करते थे। आज महंगाई का दौर है तो कमाई भी बढ़ी है। वे बताते हैं कि इंसान को महंगाई के इस दौर में अनावश्यक खर्च पर कंट्रोल करना चाहिए, ताकि भविष्य में कोई परेशानी का सामना न करना पड़े।सिर पर रखकर लाया करते थे दूध की टंकियां

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