Friday, February 13, 2009
तब सुई-धागे से घर मेंे कपड़ों की सिलाई करते थे
वो भी वक्त था जब सूरज-चांद को देखकर समय का अंदाजा लगाया जाता था। उम्र के 81वें वर्ष में प्रवेश कर चुकीं पारीदेवी शर्मा बताती हैं कि जब वह छोटी होती थीं तो उनके घरों में घडि़यां नहीं हुआ करती थीं। परिवार वाले दिनचर्या को देखते हुए समय का अंदाजा लगाया करते थे। सूरज-चांद से सुबह व शाम का पता चलता था। इसी के दृष्टिगत खाना बनाने व खाने का समय तय किया हुआ था। उन्होंने बताया कि आज हर घर में टेलीविजन है, लेकिन तब ऐसा नहीं था। मुट्ठी जितने कस्बे में एकाध घर में टीवी हुआ करता था, जिसे देखने के लिए बच्चों का हुजूम लग जाता था। परन्तु महिलाएं टीवी नहीं देखा करती थीं। आज टीवी ने देश की संस्कृति को बिगाड़ कर रख दिया है। चूल्हा छोड़ महिलाएं ज्यादा समय टीवी देखने में बिताने लगी हैं। तब तो महिलाएं घर में ही चक्की के जरिए बाजरी पीसा करती थीं, फिर उसकी रोटी बनाती थीं। इसके बाद महिलाएं खेतों में भी काम करने जाया करती थीं। आज जहां कपड़ों की सिलाई के लिए अनेक दुकानें खुली हुई हैं, लेकिन तब तो घर में सिलाई मशीन भी नहीं होती थी और महिलाएं सुई-धागे के जरिए कपड़ों की सिलाई किया करती थीं। शिक्षा महिलाओं के लिए भी कितनी जरूरी है, इस बात का अंदाजा आज के वक्त से लगता है, लेकिन शिक्षा के साथ-साथ इंसान संस्कारों को न भूले।
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