Saturday, February 21, 2009
जवानी में था कुर्ता, पायजामा व जूती का शौंक
डेढ़ रुपए में 20 किलोमीटर चलकर पढ़ाने जाते थे, फिर भी थकान जैसी चीज नहीं थी। कारण था घर का दूध-दही। परंतु आज दो-चार किमी बिना मोटरसाइकिल के चलना लोगों को मुश्किल लगता है। करीब 71 वषीüय एफ ब्लॉक निवासी हरनेकसिंह बताते हैं कि कल के मुकाबले आज में परिवर्तन तो आया है, लेकिन सुविधाएं भी बढ़ी हैं। बीते पलों को याद करते हुए उन्होंने बताया कि तब मकानों की छतों पर टीन-छप्पर लगे होते थे, जो आंधी आने पर उड़ जाया करते थे। उन्होंने बताया कि नजदीकी गांवों से गंगानगर में पढ़ने के लिए अनेक स्टूडेंट्स के साथ वे यहां रहते थे। एसडी स्कूल तो थोड़े समय पूर्व ही बना है, इससे पहले यहां बहुत कम संख्या में लोग रहते थे। उक्त स्थान पर एक हॉस्टल में दोस्तों के साथ रहना आज भी याद है। डेढ़ सौ कच्चे-पक्के कमरों से बने हॉस्टल का 15 रुपए किराया लगा करता था। वहीं नजदीक छज्जूराम की दुकान पर खूब खाया-पीया करते थे। तब जयपुर बोर्ड की शिक्षा हुआ करती थी। उन्होंने बताया कि आज युवक नई किस्म के रंग-बिरंगे कपड़े पहनते हैं, लेकिन जब वे हॉस्टल में रहते थे तो उनके पास दो-दो कुतेü व पायजामे होते थे, जिनके जरिए वे पूरा सत्र निकाला करते थे। उन्होंने बताया कि शूज के स्थान पर जूती का प्रचलन था। उन्होंने बताया कि नहाने व तैयार होने से ज्यादा समय पगड़ी बांधने में लगाया करते थे। पगड़ी के प्रति युवाओं में रूचि बहुत अधिक थी। अब वो समय बीत चुका है, कई बार पुरानी यादें ताजा होती हैं, तो अच्छा महसूस होता है।
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