Friday, January 30, 2009

`फरियादी की पीड़ा भांपने में माहिर थे महाराजा गंगासिंह´


वो जमाना अब कहां। ना तो वैसा न्याय और ना ही आपसी प्रेमभाव। करीब 76 वषीüय आढ़त व्यवसायी राकेशचंद्र अग्रवाल गुजरे जमाने को भूले नहीं और उसे अपने ही अंदाज में बयां करते हैं। वे बताते हैं कि जब वे 12-13 साल के थे, तब महाराजा गंगासिंह गंगानगर आए तो रेलवे स्टेशन पर बेतहाशा भीड़ थी। बकौल अग्रवाल उक्त समय उनकी स्काउट के रूप में स्टेशन पर ड्यूटी लगी थी। स्टेशन के नजदीक ही महाराजा गंगासिंह के बैठने हेतु चांदी की कुर्सी लगी हुई थी। महाराजा के ट्रेन से उतरने पर फरियादी उनसे मिलने को आतुर थे तो वहां तैनात पुलिस ने उन्हें रोक लिया। फरियादी की पीड़ा को भांपने में माहिर महाराजा गंगासिंह ने फरियादियों को उनसे मिलने की इजाजत दी। वे बताते हैं तब फरियादी की जायज पीड़ा के लिए महाराजा तुरंत उसे राहत देने के आदेश देते थे और हाथों-हाथ न्याय मिल जाया करता था। आज वक्त बदल चुका है। रंग-बिरंगी दुनिया है और भांत-भांत के लोग। वे बताते हैं कि बंटवारे के वक्त शरणार्थियों को खाने के लिए घर से भूने हुए चने बांटना उन्हें आज भी याद है। आज स्वार्थ हावी है। पाश्चात्य संस्कृति को तरक्की में बाधा मानते हुए अग्रवाल बताते हैं कि यह भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है। कपड़ों का उपयोग बदन ढकने के लिए कम, फैशन के लिए ज्यादा किया जाने लगा है। युवाओं से उम्मीद के बल पर टिके देश के लिए बढ़ती नशे की प्रवृçत्त परेशानी का कारण है।

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