Saturday, January 31, 2009
1957 के बाद हुआ था 100 पैसे का एक रुपया
बुजुगाüवस्था में हमारी बातें शायद कुछ लोगों को कड़वी लगें, लेकिन मेरे जैसे उम्रदराज लोगों के पास बहुत से ऐसे अनुभव हैं, जिसके जरिए मनुष्य समाज में नए आयाम स्थापित कर सकता है। यह कहना है कि 75 वषीüय मोतीलाल शर्मा का। विनोबा बस्ती निवासी शर्मा बताते हैं कि बचपन के वक्त एक-दो आना में दिनभर मौज-मस्ती किया करते थे। सस्ते जमाने में घर में ही दूध, घी व मक्खन खाने को मिल जाया करते थे। वे बताते हैं कि 1957 के बाद से 100 पैसे का एक रुपए हुआ था, उससे पहले पैसे को `आना´ में आंका जाता था। जमीनों के भाव तो बहुत ही कम हुआ करते थे, लेकिन लोगों के पास आबियाना चुकाने के लिए पैसे नहीं होते थे। वे बताते हैं कि करीब 50 साल पहले गंगानगर में आज के मुकाबले यातायात के साधन शून्य हुआ करते थे। कहीं भी आना-जाना होता था तो ऊंटगाड़े का इस्तेमाल किया करते थे। शहर भर में ऊंटगाड़ा दौड़ाना आज भी याद है। जगह-जगह टिब्बे हुआ करते थे। न तो भारी वाहनों का शोर और न ही ट्रैफिक अव्यवस्था जैसी समस्या। आज तो रात-रात भर लोग घूमते रहते हैं, तब शाम ढलते ही सोने की तैयारी कर लिया करते थे। आज तो मनोरंजन के साधनों का अथाह भंडार है, लेकिन तब ऐसा नहीं था। हरियाणा में जन्मे शर्मा आज भी शहर में अपने मित्रों से मिलने के लिए पैदल ही निकल लेते हैं और उनके साथ बैठकर पुरानी यादों को ताजा करते हैं। शर्मा बीते लम्हों को आइने में बरकरार रखना चाहते हैं।
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