Friday, January 30, 2009
तब पुरानी आबादी सब्जी मंडी की जगह `छप्पड़´ हुआ करता था
कहते हैं कि इंसान जब 100 साल का हो जाता है, तो इस उपरांत उसमें बचपन की झलक नजर आने लगती है। जिस तरह बचपन बिताया, ठीक उसी प्रकार उम्र के इस पड़ाव में व्यक्ति की अंतराüत्मा अनजान व निश्चित प्रतीत होने लगती है। करीब 100 वषीüय मोहनलाल धींगड़ा का शरीर अब पहले जितना साथ नहीं देता, लेकिन उनके लबों से निकलने वाला हरेक लफ्ज यह बयां करता है कि वे आज भी बहुत कुछ करने में समक्ष हैं। पुरानी आबादी (धींगड़ा स्ट्रीट) निवासी धींगड़ा के अनुसार करीब 40-50 साल पहले वे निकटवतीü गांव कोठा में रहा करते थे, तब शहर गंगानगर साइकिल के जरिए आया करते थे। सरकारी सेवा से रिटायर धींगड़ा बताते हैं कि कभी-कभी साइकिल खराब हो जाती थी तो पैदल ही शहर से गांव आया-जाया करते थे। वे बताते हैं कि आज पुरानी आबादी में जहां सब्जी मंडी लगा करती है, तब यहां पशुओं के लिए छप्पड़ (पानी का तालाब) हुआ करता था। लोग यहां पशुओं को नहलाया करते थे। धीरे-धीरे विकास होता गया और यहां सड़क मार्ग व सब्जी मंडी बन गई। बकौल मोहनलाल धींगड़ा तब शहर को रामनगर के नाम से पुकारा जाता था, जब यहां गंगनहर लाई गई, फिर शहर का नाम गंगानगर रखा गया। भारत-पाक बंटवारे के वक्त पाकिस्तान जाने वाले शरणार्थियों को कोठा गांव में चने, गुड व दूध खिलाकर सुबह गंतव्य के लिए रवाना कर दिया करते थे। वे कहते हैं कि जब कोई मुसीबत में हो तो जात-पात व धर्म को एक बार छोड़ देना चाहिए और इंसानियत की राह पर कदम बढ़ाते हुए मदद के लिए आगे आना चाहिए।
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