अतीत में डूबना कुछ हद तक तो सामान्य बात है, लेकिन अधिकांश समय तक अतीत में डूबे रहना भी ठीक नहीं।
बात जब बुजुçर्गयत की चली तो 76 वषीüय बलवंतसिंह çढल्लों ने बताया कि पुराने समय को इंसान ज्यादा याद न करे, लेकिन उसे भूला देना भी उचित नहीं है। गांव से जुड़े लम्हों को यादों में समेटे बलवंतसिंह बताते हैं कि भारत-पाक बंटवारे के बाद वे पंजाब आकर रहने लगे, इसके बाद श्रीगंगानगर में घर बना लिया। मीरा चौक निवासी बलवंतसिंह बताते हैं कि मां का घर में लस्सी को रिड़कना और मक्खन निकालकर खिलाना आज भी याद है। लस्सी रिड़कने वाली रंगली मधानी को देखकर पास बैठे बच्चों के मुंह में पानी आ जाता था, क्योंकि मक्खन जो मिलने वाला है। पर अब वो वक्त बीत चुका है। वस्त्र व्यवसायी çढल्लों आज भी टू-व्हीलर पर शहर ही नहीं बल्कि नजदीकी गांवों में अकेले ही घूम आते हैं। बढ़ती उम्र को वे कुछ नहीं समझते, क्योंकि समय पर खाने के मामले में हर वक्त सचेत रहना उनकी आदत है। पौते-पौतियों वाले çढल्लों बताते हैं कि पुराने समय में मां कई बीमारियों का देसी इलाज घर में कर दिया करती थी। लालच से दूरी बनाए रखने के लिए वे कहते हैं कि-
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर।
आशा तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर।
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