Thursday, January 29, 2009

सोने का भाव 40 रुपए था, फिर भी खरीदार कम थे


सब मिलजुल कर रहते थे। न तो कोई किसी जात से घृणा करता था और न ही किसी धर्म से। फिर भी न जाने क्यूं भारत-पाक बंटवारे के वक्त कत्ल-ए-आम हुआ। शायद वो वक्त की बेहरहमी ही थी। करीब 87 वषीüय सरस्वती देवी से जब कोई पुराने समय की बात करता है तो वे बंटवारे के समय की आपबीती बताने से नहीं चूकतीं। वे बताती हैं कि पाकिस्तान के बहावलनगर में हनुमान जी का मंदिर हुआ करता था, जहां बड़ी श्रद्धा व उल्लास के साथ लोग कीर्तन के लिए एकत्रित हुआ करते थे, जो आज भी याद है। उन्होंने बताया कि उनकी शादी के वक्त सोने का भाव 40 रुपए तोला हुआ करता था, लेकिन खरीदने वालों की कमी थी। बड़े सस्ते व टिकाऊ जमाने में एक रुपए का पांच किलो गुड़ व दो रुपए किलो काजू आ जाया करते थे। बकौल सरस्वती देवी 1947 में वे परिवार सहित भारत आईं। तब यहां चुनिंदा घर हुआ करते थे। वे बताती हैं कि महाराजा गंगासिंह की रियासत के समय लूटपाट-अन्याय के भय जैसी कोई चीज नहीं हुआ करती थी। आजकल तो कदम-कदम पर खौफ है। तब महाराजा गंगासिंह गणगौर जी की सवारी के दौरान लोगों से मुखातिब हुआ करते थे। वे हर किसी का सम्मान करते थे और लोगों के दिलों में भी उनके प्रति आदर भाव था। वे बताती हैं कि आज वक्त बहुत बदल चुका है, बुजुगोZ के प्रति लोगों का रवैया भी बदला है। नाती-पोतों वाली सरस्वती देवी सिविल लाइंस स्थित अपने पुत्र के साथ क्वार्टर में रह रही हैं। उन्हें बच्चों व महिलाओं से पुराने समय की बातें करना बहुत अच्छा लगता है।

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