Tuesday, March 3, 2009

बाहर से आने वाले सामान पर लगता था `जकात´


जीवन को पटरी पर निरंतर चलने देने के लिए अतीत भी एक सहारे के रूप में काम करता है। बीते दिनों की यादों में बहुत से मीठे-कड़वे अनुभव भी çछपे होते हैं। करीब 72 वषीüय भगवानदास नागपाल ने बताया कि भारत-पाक बंटवारे के दौरान खाली हाथ और केवल बदन पर कपड़े थे। यहां आने पर नए सिरे से जीवन की शुरुआत की। कठिनाइयों के बावजूद एमए, एलएलबी की शिक्षा हासिल की। तब इतने साधन नहीं हुआ करते थे, फिर भी कभी उनकी कमी का अहसास नहीं होता था। उन्होंने बताया कि पुराने समय में क्षेत्र में बाहर से आने वाले सामान पर कर (जकात) लगाया जाता था। व्यापार मंडल भवन व कचहरी के नजदीक जकात थाने बने हुए थे, जहां जकात लिया जाता था। कर तो अब भी लगता है, लेकिन पुराने तरीके और आज के तरीके में काफी अंतर है। पहले सब बाहर से आने वाले सामान पर लगने वाले कर को जकात कहा करते थे। नागपाल ने बताया कि पेयजल का एकमात्र साधन डिçग्गयां हुआ करती थीं। बचपन के वक्त डिçग्गयों के बाहर बाçल्टयों से पानी भरकर नहाया करते थे। युवा पीढ़ी को प्रकृति से सामंजस्य बनाकर चलने के साथ ईमानदारी की सलाह देते हुए नागपाल ने कहा कि आज स्टेट्स सिंबल में परिवर्तन आया है। तब के समय यदि किसी के पास घड़ी अथवा साइकिल भी होती थी तो वह सुविधाएं उक्त व्यक्ति की अमीरी को दशाüती थीं। गंगानगर के एसडी कॉलेज से पहले बैच में लॉ करने वाले नागपाल का कहना है कि महंगाई के इस दौर में इंसान को खर्च सोच-समझकर करना चाहिए।

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